Friday, November 4, 2016

शुरुआत

२०११ में जब पहली बार कंप्यूटर और इन्टरनेट का इस्तेमाल शुरू किया था तब इसे शुरू किया था. लेकिन इन ५ सालों में भी इसे शुरू नहीं कर पाया ! के ये अब शुरू हो पायेगा ?

क्या हम जिम्मेदार नागरिक हैं ?

        हम भारत के लोग !
  क्या हम अच्छे नागरिक हैं ?
इस सवाल के दो जवाब हैं.
१. हम जब अपने देश में होते हैं तो हम फुल बदतमीजी से जीते हैं. जहाँ मर्जी वहां थूक देंगे ! जहाँ मर्जी वहां मूत देंगे ! कोई हमें टोक दे तो लड़ने-मारने पर उतारू ! "तेरे बाप का क्या जाता है"
२. जब हम दूसरे मुल्क में होते हैं तो वहां बड़ी इमानदारी से उनके सभी नियम कानूनों को मानते हुए उस मुल्क के बाशिंदों से भी जादा जिम्मेदार नागरिक बनके दिखायेंगे ! और अपने मुल्क में आकर सड़क किनारे मूतते हुए प्रवचन देंगे कि फलाँ मुल्क में ऐसा नहीं कर सकते ! पुलिस, जुरमाना, सजा आदि सब किस्से सुनायेंगे !
  हम एक स्वतंत्र देश के, लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं, हमें पूरी स्वच्छंदता चाहिए, लोकतंत्र और खुला चाहिए, अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता चाहिए, लेकिन जिम्मेदारी नहीं चाहिए ! नियम कानूनों को मानते हुए हमारी नानी मरती है !
न हमें ट्रैफिक के नियम मानने हैं, न हमें सार्वजनिक स्थानों की साफ़-सफाई का ध्यान रखना है, न सार्वजनिक संपत्ति की हिफाजत की परवाह करनी है ! सरकारी चीजों को टपाने के फ़िराक में हमें बस मौका चाहिए, फिर चाहे वो चीज हमारे काम की हो या नहीं !
करप्शन के नाम पे हमसे नुक्कड़ पे कोई घंटों का भाषण दिलवा दे, लेकिन कर चोरी की जुगत में हम हर समय लगे रहते हैं ! नेताओं को हम कितनी ही गालियाँ देते रहेंगे, लेकिन दूकानदार से पक्का बिल नहीं लेंगे, बिल मांगने पर यदि वो कह दे कि साब, इतना परसेंट टैक्स लगेगा, तो हम तुरंत टोन बदल देंगे, अरे यार रहने दो, हम तो आपके परमानेंट कस्टमर हैं !
सड़क पर दुर्घटना में घायल व्यक्ति को तड़पता छोड़ हम असंवेदनशीलता की हदें पार करते हुए चुप-चाप निकल लेते हैं, और "ज़माने में ख़त्म होती इंसानियत" पे हमारी तकरीर तो लाजवाब होती है !
एम्बुलेंस को हम रास्ता नहीं देते, ट्रैफिक में हॉर्न बजा बजा कर ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं और दूसरे के हमारे पीछे से हॉन्किंग करने पर उसे भद्दी गालियाँ देते हैं. जाम में धैर्य न रख कर, लाइन में न लग कर उलटी सीधी तरफ से आगे जा कर जाम लगने का सबब बनते हैं.
कहीं कोई चीज मुफ्त बंट रही हो तो भीड़ में घुस कर आगे जाकर हाथ फैला देंगे, फिर चाहे वो जीसस कि महिमा वाली धर्म प्रचार की किताब क्यों न निकले, जिसे हमने कभी पढना तक न हो !
कहीं पर लाइन लगी हो तो उसे तोड़ने में हमें मजा आता है. आप पेट्रोल पम्प में लाइन में खड़े होंगे, तो कई लोग इधर उधर से आगे घुस कर आप से पहले पेट्रोल ले लेंगे !
आत्मविश्लेषण करने पर हम इस तरह के अनगिनत उदाहरण अपने अन्दर पायेंगे !
क्या हम खुद एक जिम्मेदार और इमानदार नागरिक बनना चाहेंगे ?
शायद कभी नहीं. लेकिन हाँ हम यह जरुर चाहेंगे कि दूसरे लोग जिम्मेदार और ईमानदार बनें.
क्या हम खुद गलत काम करना बंद कर गलत कार्य का विरोध करने की हिम्मत जुटाने को तैयार हैं ?
क्या हम दूसरों को चाहने के बजे खुद एक "खबरदार शहरी" बनना पसंद करेंगे ?